भारत की पहचान उसकी संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर से होती है। इन्हीं धरोहरों में से एक है सोमनाथ मंदिर, जिसे “श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक” कहा जाता है। गुजरात के प्रभास पाटन (वेरावल, गिर सोमनाथ) में स्थित यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला है।
धार्मिक महत्व
- कहा जाता है कि स्वयं चंद्रदेव (सोम) ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके यह मंदिर बनवाया।
- इसलिए इसे “सोमनाथ” यानी “सोम का नाथ” कहा गया।
- यहाँ दर्शन करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास है।
आक्रमण और पुनर्निर्माण की गाथा
सोमनाथ मंदिर का इतिहास संघर्ष और आस्था से भरा है।
- 11वीं सदी में महमूद ग़ज़नी ने 1025 ई. में इस मंदिर पर हमला किया और इसकी संपत्ति लूट ली।
- इसके बाद मंदिर कई बार टूटा और हर बार श्रद्धालुओं ने इसे और भव्य रूप से पुनर्निर्मित किया।
- आज का मंदिर भारत की अडिग आस्था और शक्ति का जीता-जागता उदाहरण है।
वर्तमान स्वरूप
- वर्तमान मंदिर का निर्माण 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रेरणा से हुआ।
- मंदिर समुद्र किनारे स्थित है, जहाँ से अरब सागर का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है।
- हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं।
निष्कर्ष
सोमनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की आस्था, एकता और अडिग विश्वास का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी बाधाएँ आएँ, भक्ति और सत्य कभी नष्ट नहीं हो सकते।
